Yusuf

Add To collaction

मुझ में

तबसे है काँटों की एक क़बा मुझमें,

जबसे रहती है तेरी वो "ना" मुझमें..

दुनिया मुझसे क्या क्या पूछा करती है,
दुनिया को इतनी दिलचस्पी क्या मुझमें..

बस वोही मौसम है चारों ओर यहाँ,
जिस मौसम में तेरा प्यार रहा मुझमें..

कहने को तो बरसों से हूँ इक जैसा,
लेकिन कुछ ना कुछ है रोज़ नया मुझमें..

सब कुछ इतने सस्ते में पाया है के,
छिन जाने का रहता है खटका मुझमें..

बंद मकां में पहले कोई रहता था,
वक़्त हुआ अब कोई नहीं रहता मुझमें..

   3
2 Comments

Gunjan Kamal

03-Jun-2024 02:24 PM

👏🏻👌🏻

Reply

HARSHADA GOSAVI

24-May-2024 09:16 PM

Amazing

Reply