मुझ में
तबसे है काँटों की एक क़बा मुझमें,
जबसे रहती है तेरी वो "ना" मुझमें..
दुनिया मुझसे क्या क्या पूछा करती है,
दुनिया को इतनी दिलचस्पी क्या मुझमें..
बस वोही मौसम है चारों ओर यहाँ,
जिस मौसम में तेरा प्यार रहा मुझमें..
कहने को तो बरसों से हूँ इक जैसा,
लेकिन कुछ ना कुछ है रोज़ नया मुझमें..
सब कुछ इतने सस्ते में पाया है के,
छिन जाने का रहता है खटका मुझमें..
बंद मकां में पहले कोई रहता था,
वक़्त हुआ अब कोई नहीं रहता मुझमें..
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 02:24 PM
👏🏻👌🏻
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HARSHADA GOSAVI
24-May-2024 09:16 PM
Amazing
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